Nature of Working Capital in Financial Management in hindi


हेलो दोस्तों।

आज के पोस्ट में हम कार्यशील पूंजी की प्रकृति के बारे में जानेंगें।


कार्यशील पूंजी की प्रकृति (Nature of Working Capital)

प्रत्येक व्यावसायिक इकाई को कार्यशील पूंजी की भी उतनी ही आवश्यकता होती है जितनी की स्थायी पूंजी की होती है। कार्यशील पूंजी की आवश्यकता की मात्रा को विभिन्न घटक प्रभावित करते है। व्यवसाय के दैनिक कार्यों के निरंतर संचालन के लिए कार्यशील पूंजी अति आवश्यक है। उत्पादन कार्य मे सबसे पहले कच्चा माल खरीदने के लिए कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है।




Nature of Working Capital in Financial Management in hindi
Nature of Working Capital in Financial Management in hindi




कच्चा माल क्रय करने के बाद कच्चे माल पर कुछ अतिरिक्त व्यय करके इसे तैयार माल में परिवर्तित किया जाता है फिर तैयार माल को विक्रय किया जाता है परन्तु अगर विक्रय नकद न करके उधार किया जाए तो व्यवसाय को तुरंत रोकड़ प्राप्त नही होगी। अतः विक्रय व रोकड़ प्राप्ति के बीच समय का अंतर होने के कारण इस समयावधि में दैनिक व्यावसायिक क्रियाओं का बिना किसी रुकावट निष्पादन करने के लिए कार्यशील पूंजी की आवश्यकता होती है।, संक्षेप में कच्चे माल को क्रय करने से लेकर रोकड़ प्राप्त करने तक पर्याप्त मात्रा में कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है।


कार्यशील पूंजी की आवश्यकता को एक संचालन चक्र की सहायता से भली भांति समझा जा सकता है। कच्चे माल के क्रय और फिर इसके तैयार माल तथा रोकड़ में परिवर्तित होने तक कि समयावधि को संचालन चक्र कहते है।


उत्पादन कार्य मे लगी हुई एक संस्था का संचालन चक्र निम्नलिखित पांच अवस्थाओं से होकर गुजरता है

1. रोकड़ का कच्चे माल में परिवर्तन

2. कच्चे माल का अर्धनिर्मित माल में परिवर्तन

3. अर्धनिर्मित माल का निर्मित माल में परिवर्तन

4. निर्मित माल का उधार विक्रय करके देनदारों में परिवर्तन

5. देनदारों से रोकड़ प्राप्त करके इनका रोकड़ में परिवर्तन



संचालन चक्र से स्पष्ट होता है कि संचालन चक्र रोकड़ से शुरू होकर रोकड़ पर ही समाप्त होता है। संचालन चक्र एक निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। एक व्यावसायिक इकाई को कितनी कार्यशील पूंजी की आवश्यकता है यह संचालन चक्र की अवधि पर निर्भर होता है। संचालन चक्र की समयावधि जितनी बड़ी होती जाएगी उतनी ही अधिक कार्यशील पूंजी की जरूरत होगी। एक व्यावसायिक संस्था की संचालन चक्र की समयावधि निर्माण कार्य मे लगी हुई संस्था की संचालन चक्र की समयावधि की तुलना में छोटी होती है।


एक व्यावसायिक संस्था में रोकड़ तुरन्त निर्मित माल में परिवर्तित हो जाती है तथा निर्मित माल का विक्रय करके निर्मित माल भी तुरन्त रोकड़ में परिवर्तित हो जाता है। परन्तु निर्माणी संस्थाओं में संचालन चक्र की समयावधि बड़ी होने के कारण अधिक कार्यशील पूंजी की जरूरत होती है।


इसका मुख्य कार्य यह है कि निर्माण कार्य करने के लिए पर्याप्त मात्रा में कच्चे माल का स्टॉक नियमित बनाए रखना पड़ता है। इसके साथ साथ बाजार मांग को पूरा करने के लिए निर्मित माल के रूप से स्टॉक भी नियमित रूप से बनाए रखना पड़ता है। बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करने के लिए निर्मित माल को कई बार उधार में विक्रय करने से देनदार व प्राप्य बिलों में रोकड़ फंस जाती है। 

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