Merits and Demerits of Indirect Tax in Hindi
हेलो दोस्तों।
इस पोस्ट में अप्रत्यक्ष करों के गुणों व दोषों के बारे में जानेंगे।
अप्रत्यक्ष करों के गुण (Merits of Indirect Tax)
1. सुविधाजनक - इन करों को सामान्यतः वस्तुओं के क्रय करते समय थोड़ी थोड़ी मात्रा में चुकाया जाता रहता है, अतः करदाताओं को कर चुकाने में सुविधा रहती है।
![]() |
अप्रत्यक्ष करों के गुणों व दोषों के बारे में जानकारी |
2. न्यायशीलता - निर्धन वर्ग द्वारा प्रयोग होने वाली और आवश्यक वस्तुओं पर कम दर से कर लगाकर तथा धनी वर्ग द्वारा प्रयोग होने वाली और विलासिता की वस्तुओं पर अधिक दर से कर लगाकर इन करों में न्यायशीलता लाई जा सकती है।
3. करवंचन में कठिनाई - इन करों में करवंचन में कठिनाई रहती है, क्योंकि अगर उपभोक्ता कर लगी हुई वस्तु का प्रयोग करता है, तो उसे कर देना ही पड़ेगा। डीलर कर संगृहीत करके सरकार को जमा अवश्य कराता है।
4. अधिक लोच - अप्रत्यक्ष करों में प्रत्यक्ष करों की तुलना में अधिक लोच रहती है। विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं पर लगाए जाने वाले करों में पर्याप्त लोच रहती है। आवश्यकतानुसार इनकी दरों में परिवर्तन किया जा सकता है। सरकारी राजस्व का बड़ा भाग ऐसे ही करों से प्राप्त होता है।
5. हानिकारक वस्तुओं के प्रयोग पर रोक - अप्रत्यक्ष करों द्वारा मादक पदार्थों तथा अन्य हानिकारक वस्तुओं पर ऊंची दर से कर लगाकर उनके प्रयोग को नियंत्रित किया जा सकता है। इसी कारण शराब, तम्बाकू उत्पाद पर ऊंची दर से करारोपण किया जाता है।
6. विस्तृत क्षेत्र - अप्रत्यक्ष करों से समाज के सभी वर्गों से सरकार को कुछ न कुछ कर की प्राप्ति जरूर होती है। इस प्रकार करों का आधार प्रत्यक्ष करों की तुलना में विस्तृत हो जाता है।
अप्रत्यक्ष कर और इसकी विषषताएँ जाने
7. विकासशील देशों में विशिष्ट महत्व - विकासशील देशों में इन करों का विशिष्ट महत्व होता है, क्योंकि आय का स्तर नीचा होने के कारण प्रत्यक्ष करों से पर्याप्त आय सम्भव नही हो पाती। दूसरे, उपभोग को नियंत्रित करने तथा पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित करने में अप्रत्यक्ष कर विशेष सहायक होते है।
1. प्रतिगामी प्रकृति - अगर इन करों को सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता है, तो धनी व्यक्तियों की तुलना में निर्धन पर कर का वास्तविक भार अधिक पड़ता है। इस प्रकार ये कर स्वभाव से प्रतिगामी होते है और यह कहा जाता है कि ये कर न्यायसंगत नही होते।
2. अनिश्चितता - इन करों से प्राप्त आय के बारे में अधिक अनिश्चितता रहती है, क्योंकि करों के परिवर्तन से वस्तु की मांग व पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है, जिसका पहले से सही सही अनुमान नही लगाया जा सकता। इसके कारण कर की राशि के बारे में भी अनिश्चितता रहती है।
3. सामाजिक चेतना को उतपन्न करने में प्रोत्साहन - अप्रत्यक्ष करों में प्रायः करदाता को कर देने का भाव अनुभव नही होता, जिससे उसमें कर देने के बदले वांछनीय सामाजिक चेतना उतपन्न नही होती।
4. मन्दीकाल में हानिप्रद - अर्थव्यवस्था में मन्दी के समय अप्रत्यक्ष कर उत्पादक नही होते। मन्दी के समय लोगों की क्रय शक्ति कम होती है और वे अपनी आय से आवश्यक वस्तुओं तैक नही खरीद पाते। ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष करों का कोई महत्व नही होता।
5. मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को जन्म - अप्रत्यक्ष करों से वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होती है, जिससे मुद्रास्फीति की प्रव्रत्ति को जन्म मिल सकता है। अप्रत्यक्ष कर सदैव सरकार को आकर्षित करते है, जिसके कारण अधिक करारोपण के परिणामस्वरूप मूल्य वृद्धि की प्रवृत्ति प्रकट होने लगती है।
3. करवंचन में कठिनाई - इन करों में करवंचन में कठिनाई रहती है, क्योंकि अगर उपभोक्ता कर लगी हुई वस्तु का प्रयोग करता है, तो उसे कर देना ही पड़ेगा। डीलर कर संगृहीत करके सरकार को जमा अवश्य कराता है।
4. अधिक लोच - अप्रत्यक्ष करों में प्रत्यक्ष करों की तुलना में अधिक लोच रहती है। विशेष रूप से आवश्यक वस्तुओं पर लगाए जाने वाले करों में पर्याप्त लोच रहती है। आवश्यकतानुसार इनकी दरों में परिवर्तन किया जा सकता है। सरकारी राजस्व का बड़ा भाग ऐसे ही करों से प्राप्त होता है।
5. हानिकारक वस्तुओं के प्रयोग पर रोक - अप्रत्यक्ष करों द्वारा मादक पदार्थों तथा अन्य हानिकारक वस्तुओं पर ऊंची दर से कर लगाकर उनके प्रयोग को नियंत्रित किया जा सकता है। इसी कारण शराब, तम्बाकू उत्पाद पर ऊंची दर से करारोपण किया जाता है।
6. विस्तृत क्षेत्र - अप्रत्यक्ष करों से समाज के सभी वर्गों से सरकार को कुछ न कुछ कर की प्राप्ति जरूर होती है। इस प्रकार करों का आधार प्रत्यक्ष करों की तुलना में विस्तृत हो जाता है।
अप्रत्यक्ष कर और इसकी विषषताएँ जाने
7. विकासशील देशों में विशिष्ट महत्व - विकासशील देशों में इन करों का विशिष्ट महत्व होता है, क्योंकि आय का स्तर नीचा होने के कारण प्रत्यक्ष करों से पर्याप्त आय सम्भव नही हो पाती। दूसरे, उपभोग को नियंत्रित करने तथा पूंजी निर्माण को प्रोत्साहित करने में अप्रत्यक्ष कर विशेष सहायक होते है।
अप्रत्यक्ष करों के दोष (Demerits of Indirect Tax)
1. प्रतिगामी प्रकृति - अगर इन करों को सामान्य उपभोग की वस्तुओं पर लगाया जाता है, तो धनी व्यक्तियों की तुलना में निर्धन पर कर का वास्तविक भार अधिक पड़ता है। इस प्रकार ये कर स्वभाव से प्रतिगामी होते है और यह कहा जाता है कि ये कर न्यायसंगत नही होते।
2. अनिश्चितता - इन करों से प्राप्त आय के बारे में अधिक अनिश्चितता रहती है, क्योंकि करों के परिवर्तन से वस्तु की मांग व पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है, जिसका पहले से सही सही अनुमान नही लगाया जा सकता। इसके कारण कर की राशि के बारे में भी अनिश्चितता रहती है।
3. सामाजिक चेतना को उतपन्न करने में प्रोत्साहन - अप्रत्यक्ष करों में प्रायः करदाता को कर देने का भाव अनुभव नही होता, जिससे उसमें कर देने के बदले वांछनीय सामाजिक चेतना उतपन्न नही होती।
4. मन्दीकाल में हानिप्रद - अर्थव्यवस्था में मन्दी के समय अप्रत्यक्ष कर उत्पादक नही होते। मन्दी के समय लोगों की क्रय शक्ति कम होती है और वे अपनी आय से आवश्यक वस्तुओं तैक नही खरीद पाते। ऐसी स्थिति में अप्रत्यक्ष करों का कोई महत्व नही होता।
5. मुद्रास्फीति की प्रवृत्ति को जन्म - अप्रत्यक्ष करों से वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होती है, जिससे मुद्रास्फीति की प्रव्रत्ति को जन्म मिल सकता है। अप्रत्यक्ष कर सदैव सरकार को आकर्षित करते है, जिसके कारण अधिक करारोपण के परिणामस्वरूप मूल्य वृद्धि की प्रवृत्ति प्रकट होने लगती है।
एक टिप्पणी भेजें