Doctrine of Unjust Enrichment Under Central Excise in Hindi
हेलो दोस्तों।
इस पोस्ट में अनुचित लाभ के सिद्धान्त के बारे में जानेंगे।
अनुचित लाभ का सिद्धान्त (Doctrine of Unjust Enrichment)
अनुचित लाभ का सिद्धान्त एक न्यायपूर्ण एवं वंदनीय सिद्धान्त है। कोई भी व्यक्ति दो स्त्रोतों से शुल्क एकत्रित नही कर सकता है। रिफंड की दशा में निर्माता एक ओर क्रेता से उत्पाद शुल्क वसूल करता है और दूसरी ओर उसे सरकार से रिफंड के रूप में प्राप्त नही कर सकता। इस प्रकार कोई भी निर्माता अनुचित लाभ नही उठा सकता।
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Doctrine of Unjust Enrichment Under Central Excise in Hindi |
विधान/न्यायालय का प्रयोग किसी व्यक्ति को अनुचित लाभ पहुचाने के लिए नही किया जा सकता है। इसी सिद्धान्त की अनुपालना में यह अनिवार्य है कि रिफंड का दावेदार यह सिद्ध करे कि शुल्क का भार उसने किसी अन्य पक्ष को हस्तांतरित नही किया है। उत्पाद शुल्क विभाग को यह मानने का अधिकार है कि शुल्क भार क्रेता पर डाल दिया गया है।
अनुचित लाभ का यह सिद्धान्त अनंतिम शुल्क भुगतान एवं विरोधित शुल्क भुगतान की दशा में लागू होता है। विभिन्न न्यायालयों के निर्णय के अनुसार कच्चे/पूंजीगत माल के स्वयं प्रयोग की दशा में भी निर्माता को यह सिद्ध करना अनिवार्य है कि शुल्क भार उसने आगे अंतरित नही किया है, यद्यपि इसका सिद्ध करना वास्तव में असम्भव है।
सीमा शुल्क अधिनियम की संशोधित धारा 18 (5) के अनुसार अनंतिम शुल्क भुगतान के बाद अंतिम निर्धारण में शुल्क वापसी योग्य निर्धारित हुआ है तब भी ऐसा रिफंड अनुचित लाभ के सिद्धान्त के अंतर्गत होगा। अपवाद स्वरूप निम्नांकित स्थितियों में ही रिफंड निर्यातक/आयातक को किया जा सकता है :
1. जब यह सिद्ध कर दिया जाए कि शुल्क भार आगे नही अंतरित किया गया है।
2. अगर आयात व्यक्ति द्वारा निजी प्रयोग के लिए किया गया हो।
उत्पाद शुल्क की वापसी
3. धारा 26 के अंतर्गत निर्यात शुल्क की वापसी।
4. धारा 74-75 के अंतर्गत निर्यातकों को Duty Drawback.
अनुचित लाभ इस सिद्धान्त की अनुपालना में अगर आवेदक को रिफंड स्वीकार भी किया जाता है, परन्तु वह यह सिद्ध नही कर पाता कि शुल्क भार आगे नही डाला गया है, तो स्वीकृत रिफंड राशि उपभोक्ता संरक्षण कोष में जमा करा दी जाती है, क्योंकि इस राशि पर राज्य का भी कोई अधिकार नही होता है।
अनुचित लाभ का यह सिद्धान्त अनंतिम शुल्क भुगतान एवं विरोधित शुल्क भुगतान की दशा में लागू होता है। विभिन्न न्यायालयों के निर्णय के अनुसार कच्चे/पूंजीगत माल के स्वयं प्रयोग की दशा में भी निर्माता को यह सिद्ध करना अनिवार्य है कि शुल्क भार उसने आगे अंतरित नही किया है, यद्यपि इसका सिद्ध करना वास्तव में असम्भव है।
सीमा शुल्क अधिनियम की संशोधित धारा 18 (5) के अनुसार अनंतिम शुल्क भुगतान के बाद अंतिम निर्धारण में शुल्क वापसी योग्य निर्धारित हुआ है तब भी ऐसा रिफंड अनुचित लाभ के सिद्धान्त के अंतर्गत होगा। अपवाद स्वरूप निम्नांकित स्थितियों में ही रिफंड निर्यातक/आयातक को किया जा सकता है :
1. जब यह सिद्ध कर दिया जाए कि शुल्क भार आगे नही अंतरित किया गया है।
2. अगर आयात व्यक्ति द्वारा निजी प्रयोग के लिए किया गया हो।
उत्पाद शुल्क की वापसी
3. धारा 26 के अंतर्गत निर्यात शुल्क की वापसी।
4. धारा 74-75 के अंतर्गत निर्यातकों को Duty Drawback.
अनुचित लाभ इस सिद्धान्त की अनुपालना में अगर आवेदक को रिफंड स्वीकार भी किया जाता है, परन्तु वह यह सिद्ध नही कर पाता कि शुल्क भार आगे नही डाला गया है, तो स्वीकृत रिफंड राशि उपभोक्ता संरक्षण कोष में जमा करा दी जाती है, क्योंकि इस राशि पर राज्य का भी कोई अधिकार नही होता है।
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