History of Central Sales Tax in Hindi

हेलो दोस्तों।

इस पोस्ट में केंद्रीय विक्रय कर के इतिहास के बारे में जानेंगे।


केंद्रीय विक्रय कर का इतिहास (History of Central Sales Tax)

केंद्रीय विक्रय कर ऐसा कर है जो वस्तुओं के अन्तर्राजीय विक्रय, अर्थात एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच किए गए विक्रय पर लगता है। यह कर केंद्रीय सरकार द्वारा लगाया गया है, लेकिन इसकी वसूली राज्यों द्वारा की जाती है तथा इस कर की राशि का उपयोग भी राज्य सरकार द्वारा ही किया जाता है।



History of Central Sales Tax in Hindi
History of Central Sales Tax in Hindi




राज्य सरकारें अन्तर्राजीय विक्रय, राज्य के बाहर क्रय एवं विक्रय, आयात निर्यात आदि पर विक्रय कर लगाने का अधिकार नही रखती है इसलिए 1956 में केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम पारित किया गया। यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत पर लागू होता है।


विक्रय कर कानून वैधताकरण अधिनियम 1956 - Bengal Immunity Co. Ltd. के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णयानुसार राज्य सरकारें आर्थिक संकट में आ गयी और राष्ट्रपति को एक अध्यादेश जारी करना पड़ा जिसे विक्रय कर कानून अधिनियम 1956 के रूप में पारित किया गया। तदनुसार विभिन्न राज्यों द्वारा 1 अप्रैल 1951 से 6 सितंबर 1955 की अवधि में लगाये एवं संग्रह किए गए विक्रय कर को वैध कर दिया गया।


केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम 1956 - संशोधित अनुच्छेद 286 के द्वारा दिए गए उपर्युक्त अधिकार के फलस्वरूप संसद में केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम 1956 पारित किया जिसे 21 दिसम्बर 1056 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। सरकारी राजपत्र में 4 जनवरी 1957 को अधिसूचित किया गया और 5 जनवरी 1957 से प्रभावित हुआ। लेकिन इसके अंतर्गत केंद्रीय विक्रय कर केवल ऐसी बिक्रियों पर लगाया गया जो 1 जुलाई 1957 को या उसके बाद कि गयी।


केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम 2001 - केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम में एक नया अध्याय VI जोड़ा गया है। तदनुसार केंद्रीय सरकार अन्तर्राजीय व्यापार के अंतर्गत विवादों के निपटारे के लिए अपील प्राधिकरण की स्थापना कर सकती है।


केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम में वित्त अधिनियम 2002 द्वारा संशोधन - केंद्रीय विक्रय कर अधिनियम में वित्त अधिनियम, 2002 द्वारा निम्न महत्वपूर्ण संशोधन किए गए है :

1. विक्रय को पुनः परिभाषित किया गया है।


2. धारा 6A संशोधित की गई हैं तदनुसार अगर व्यापारी कोई माल एक राज्य से दूसरे राज्य में भेजता है और कहता है कि उसने वह माल अपने एक व्यापारिक स्थान पर भेजा है या एजेंट ने माल अपने नियोक्ता को भेजा है परन्तु फॉर्म F दाखिल नही करता तो इसे विक्रय मानकर कर वसूल किया जाएगा।


3. धारा 8 का संशोधन :

(i) अगर सरकार अधिसूचना जारी करके सार्वजनिक हित मे कर की दर कम करती है तो इसका लाभ पंजीकृत व्यापारी फार्म C पर माल खरीद कर उठा सकता है। अपंजीकृत व्यापारी को इस छूट का लाभ नही मिलेगा।

(ii) अब व्यापारी फॉर्म C पर माल दूर संचार नेटवर्क में काम मे लेने के लिए भी कर सकता है।

केंद्रीय विक्रय कर के प्रकार

4. धारा 15 का संशोधन - अब घोषित माल पर एक से अधिक बिंदुओं पर कर लगाया जा सकता है, परन्तु कर की दर 4 प्रतिशत से अधिक नही हो सकती। इस संशोधन का मूल उद्देश्य यह है कि अगर राज्य सरकारें चाहे तो अपने अधिनियमों में संशोधन करके घोषित माल पर मूल्य परिवर्धित कर (VAT) लगा सकती है।


विक्रय कर विधान - विक्रय कर अधिनियम कर अंतर्गत राज्य सरकार माल के क्रय विक्रय पर विक्रय कर लगा सकती है। अगर कर कुछ विशिष्ट वस्तुओं पर लगाया जाता है तो इसे चुना हुआ विक्रय कर कहते है। जब विक्रय कर अधिकतम वस्तुओं पर लगाया जाता है तो इसे सामान्य विक्रय कर कहते है। अतः विक्रय कर अधिनियम सामान्य विक्रय कर अधिनियम से विस्तृत है। इसमें चुना हुआ विक्रय कर एवं सामान्य विक्रय कर दोनो शामिल होते है। 

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