शाखा खाते (Branch Account)

वैसे तो सभी बड़ी व्यवसयिक संस्थाए अपने माल की अधिक बिक्री के लिए एवं अधिक लाभ पाने के लिए देश तथा विदेश में अपनी शाखाएं खोलती है। जिसका प्रबन्ध एवं नियन्त्रण मुख्य कार्यालय से किया जाता हैं । शाखाओं के खाते बनाने के मुख्य उद्देश्य निम्न लिखित है। 




Branch Account
Branch Account



  • प्रत्येक शाखा का अलग अलग लाभ हानि ज्ञात करना
  • शाखाओं पर नियंत्रण रखना
  • शाखाओं के लिए माल या रोकड़ की उचित व्यवस्था करना
  • शाखाओं की कार्य क्षमता बढ़ाना

शाखाओं के भेद

शाखाओं के लिखे रखने के लिए कौन कौन सी लेख पद्धति प्रयोग की जायेगी यह शाखाओं की प्रकृति, आकार तथा प्रधान कार्यालय द्वारा उन पर रखे जाने वाले नियन्त्रण पर निर्भर करती है। शाखाओं के लिए लेख पद्धति का अध्यन करने के लिए शाखाओं को निम्न भागो में बांटा जा सकता है। 



1. देशी शाखा

  • आश्रित शाखाएं
  • स्वत्रन्त्र शाखाएं

2. विदेशी शाखा

आश्रित शाखा - ये शाखाये केवल वही माल बेच सकती है। जो इन्हें प्रधान कार्यालय से प्राप्त होता है। इस शाखा के स्थायी खर्चो का भुगतान प्रधान कार्यालय द्वारा किया जाता है। कुछ फुटकर व्यय करने का अधिकार शाखा प्रबंधक को होता है। जिसके लिए प्रधान कार्यालय अलग से कुछ राशि अग्रिम के रूप में भेजता है। 

स्वतन्त्र शाखाएं - ऐसी शाखाओं को मुख्य कार्यालय द्वारा बनाई गई नीतिओ के आधार पर व्यवसाय करते ही पूर्ण स्वतंत्रता होती है और ये दोहरा लेख पद्धति के अनुसार अपनी पुस्ते रखती है। मुख्य कार्यालय केवल इसका स्वामी और इनके लाभ हानि का वहन कर के करने वाला होता है। मुख्य कार्यालय द्वारा भेजे गए माल के अतिरिक्त ये स्वय भी अपनी आवश्यकतानुसार बाजार से माल खरीद सकती है। उधार क्रय व विक्रय कर सकती है। ये शाखाये एक स्वत्रंत व्यवसयिक इकाई की तरह आवश्यक खताबहिया व पुस्तके रखती है। वर्ष के अंत मे ये शाखाये अपनी तलपट बनाती है जिसे मुख्य कार्यालय को भेज देती है। मुख्य कार्यालय इस तलपट को अपने तलपट में समामेलित करके अपने अंतिम खाते बनाता है।


2. विदेशी शाखा - किसी प्रधान कार्यालय की विदेश में स्थित शाखा को विदेशी शाखा कहते है। क्योंकि इन शाखाओं के लेन देन विदेशी मुद्रा में होते है। अतः इनके द्वारा वर्ष के अंत में प्रधान कार्यालय को जो तलपट भेजता जाता है वह भी विदेशी मुद्रा में ही होता है। प्रधान कार्यालय पहुचने पर विदेशी शाखा के तलपट की राशियां को प्रधान कार्यालय की मुद्रा में परिवर्तित किया जाता है। इसके बाद ही विदेशी शाखा के तलपट को प्रधान कार्यालय की पुस्तकों में समामेलित किया जाता है। और अंतिम खाते व समामेलित चिट्ठा बनाया जाता है। 


यदि दोनों देशों की मुद्राओ की विनिमय दरों से बहुत ही कम परिवर्तन होता है तो तलपट की मदों को परिवर्तित करने के लिए स्थायी दर का प्रयोग किया जा सकता है। 

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